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पश्चिम बंगाल की हिंसा पर एनएचआरसी की रिपोर्ट. अब करेगी केंद्र सरकार ?

 कोलकाता उच्च न्यायालय के निर्देश पर गठित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की 7 सदस्य टीम ने पश्चिम बंगाल का दौरा किया. दुर्भाग्य से यह टीम, जो हिंसा की जांच करने गई थी, स्वयं हिंसा का शिकार हो गई और जादवपुर में उसके ऊपर हमला किया गया. इनको वापस आना पड़ा और इसके बाद केंद्रीय सुरक्षा बलों के साये में इस टीम ने अपना कार्य प्रारंभ किया. टीम ने 20 दिनों में 311 से अधिक जगहों पर दौरा किया और 50 पेज की अपनी एक रिपोर्ट कोलकाता उच्च न्यायालय को सौंप दी है .




रिपोर्ट के अंश के समाचार पत्रों में प्रकाशित होने के तुरंत बाद ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर जबरदस्त प्रहार किया और उसे रिपोर्ट लीक होने का जिम्मेदार ठहराया. लेकिन टीम के अध्यक्ष ने बताया कि उन्होंने रिपोर्ट की एक कॉपी राज्य सरकार को भी भेजी थी इसलिए राज्य सरकार का यह कहना उचित नहीं है कि रिपोर्ट टीम ने लीक की है.

50 पन्ने की अपनी रिपोर्ट में टीम ने जिन बड़े अपराधी तत्वों के नाम अपनी रिपोर्ट में लिखे हैं वे ज्यादातर तृणमूल कांग्रेस के बड़े नेता या कार्यकर्ता है.

रिपोर्ट से पता चलता है कि पुलिस ने ज्यादातर मामलों में रिपोर्ट भी दर्ज नहीं की लेकिन जो भी रिपोर्ट दर्ज की गई है उनमें 9300 व्यक्तियों को नामजद किया गया है किंतु पुलिस ने अब तक केवल 1300 लोगों को गिरफ्तार किया है और उनमें से भी 1086 लोगों को थाने से ही जमानत दे दी गई.

रिपोर्ट में लिखा है हिंसा के सभी मामले सत्ताधारी दल ने अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए जानबूझकर किए.

टीम ने सख्त टिप्पणी करते हुए लिखा है कि पश्चिम बंगाल में कानून का शासन नहीं है बल्कि शासक का शासन है यानी ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस की व्यक्तिगत राज शाही है.

पश्चिम बंगाल में अगर तुरंत हत्याये नहीं रोकी गई तो गणतंत्र की हत्या हो जाएगी

अपनी रिपोर्ट में टीम ने प्रमुख संस्तुति की है कि -

  • जिन गांव में हिंसा के 5 से अधिक मामले आए हैं वहां लोगों में विश्वास बनाए रखने के लिए और लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय सुरक्षा बल तैनात किए जाएं.

  • हत्या बलात्कार आगजनी लूटपाट के सभी मामले केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दे जाएं क्योंकि राज्य पुलिस पर लोगों का भरोसा बिल्कुल भी नहीं बचा है

  • तभी मुकदमों की ट्राई राज्य के बाहर किये जाए जिसके लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया जाए ताकि लोगों को त्वरित निर्णय दिए जा सकें और उन्हें पुनर्वास रोजगार तथा आर्थिक सहायता शीघ्रता से उपलब्ध कराई जा सके

  • सर्वोच्च न्यायालय की देखरेख में एसआईटी गठित की जाए जिसमें वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी नियुक्त किए जाएं जो राज्य सरकार के अधिकारियों के दबाव में ना आए.

केंद्र सरकार पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम आने के बाद से ही बहुत ही रक्षात्मक मुद्रा में है जिससे न केवल भाजपा के कार्यकर्ताओं का बल्कि सामान्य जनमानस का मनोबल भी गिर रहा है. कितने ही ऐसे लोग जिन्होंने तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन की थी अब सट्टा और आतंक के दबाव में अपना मुंडन करवा कर, दुख प्रकट करके, क्षमा मांग कर वापस तृणमूल कांग्रेस में आ रहे हैं.

सभी बुद्धिजीवियों में यह धारणा थी कि शायद भाजपा यह चाहती है कि उस पर धारा 356 के दुरुपयोग का आरोप ना लगे इसलिए बहुत मजबूत केस पश्चिम बंगाल सरकार के विरुद्ध बना रही है . यह कहते-कहते भी कई महीने बीत गए हैं इस बीच केंद्र सरकार ने अधिकारियों के स्थानांतरण सहित मुख्य सचिव को कारण बताओ नोटिस देकर यह संकेत दिया था कि शायद कोई सख्त कार्यवाही की जाएगी जो पुलिस और नौकरशाहों के लिए भी उदाहरण बन सकेगी. पर अभी तक कुछ नहीं हुआ.

पश्चिम बंगाल की हिंसा को लेकर सर्वोच्च न्यायालय भी उदासीन रहा लेकिन अब जो भी कोलकाता उच्च न्यायालय ने बहुत गंभीर टिप्पणियां की हैं सर्वोच्च न्यायालय ने भी पश्चिम बंगाल की सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं और अब आखिर में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में ममता की निर्ममता को पूरी तरह से उजागर कर दिया है, अब केंद्र सरकार सरकार किस चीज का इंतजार कर रही है ? अब इससे उपयुक्त मौका नहीं आएगा.

लोग भले ही कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाते रहे हो कि उन्होंने धारा 356 का भयंकर दुरुपयोग किया लेकिन क्या करें भाजपा को जो धारा 356 का सदुपयोग भी नहीं कर पा रही है जबकि यह लोगों की जानमाल की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है और यह पहली बार है जब लगभग समूचा देश पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन की मांग कर रहा है. अब तो केंद्र सरकार के लिए यही कहा जा सकता है कि

“मत चूको चौहान”

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- शिव मिश्रा

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