इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को लॉक डाउन में रहते हुए दिनभर नकारात्मक समाचार मिलने से उत्पन्न अवसाद और कुंठा की भावना से बाहर निकाल कर नयी ऊर्जा और सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने का साहस पैदा करना है.
इस समय शायद सभी लोग कुछ न कुछ मनोवैज्ञानिक दबाव में हैं, जिसकी कुंठा से कई बार यह लगने लगता है कि उनको अनावश्यक रूप से रोक रखा गया है, जैसे जो कुछ हुआ है या हो रहा है वह स्वयं उसका हिस्सा नहीं है.
मोदी जी के संबोधन के बाद , 5 अप्रैल को रात्रि 9:00 बजे, 9 मिनट के लिए दीप प्रज्वलित करने के इस कार्य के लिए सभी को ६० घंटे का समय भी मिल गया जिससे लोग इस पर खुलकर चर्चा कर सकें . इतने समय में हम सब महसूस करेंगे कि कितना बड़ा अभियान जिसका उद्देश्य राष्ट्र और समूची मानवता की रक्षा करना है और हमारा घर में बने रहना भी इस अभियान के लिए एक आहुति के समान है.
इसका एक वैज्ञानिक पहलू भी है और वह है Social Distancing करने के कारण उत्पन्न हुयी विरिक्तता को Social Distancing का पालन करते हुए भी सामूहिकता में बदलना . विरिक्तता वह भाव है जो मनुष्य को संसारिकता से दूर ले जाने का कार्य करती है . लेकिन आज विरिक्तता के साथ चिन्ता भी है . पता नही बचेंगे या नहीं ? ?..वगैरह . यह स्थिति बहुत ही खतरनाक है . कितने ही लोगों ने आत्म हत्या कर ली और कितनों ने ऐसा करने का प्रयास किया होगा पता नही. 5 अप्रैल को दीपों के इस पर्व में जब अन्य लोगों को भी दीपक लिए हुए देखेंगे तो कदाचित हम भूल जाएंगे कि हम लोग साथ-साथ नहीं है और यह सामूहिकता हम सभी को एकता के सूत्र में पिरो देगी . यह सभी नकारात्मक विचारों से बाहर निकाल कर हमें मन , वाणी और कर्म से सामान्य स्थिति में लाने में बहुत सहायता करेगी.
दीप के साथ हमारी सामूहिकता किसी बड़े अभियान में हमें विजय के प्रति एकजुटता का भाव भी देगा और विजय के प्रति आश्वस्त भी करेगा. स्वभाविक है इस अभियान के कर्ता-धर्ता चाहे वह सरकार हो या वह सारी टीम जो इस अभियान का हिस्सा है, उनमें भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा और वह सब पूरी मजबूती के साथ आगे बढ़ने का उनका दृढ़ संकल्प और मजबूत होगा.
अगर मोदी जी स्वयं यह कहते कि उन्होंने 9:00 बज कर 9 मिनट का इसलिए समय चुना है, और स्वयं उन्होंने सुबह 9:00 बजे का समय देश को संदेश देने के लिए क्यों चुना है ? तो शायद उनकी आलोचना करने वालों को एक बहुत बड़ा विषय मिल जाता और पूरे विश्व में उन्हें निशाना बनाया जाता. लेकिन यह सत्य है कि उन्होंने अपना संदेश भी 9:00 बजे दिया और वह भी 9 मिनट के लिए. इसका कुछ न कुछ गणितीय , ज्यामितीय और ज्योतिषीय महत्व है, मुझे लगता है कि बनारस उनका क्षेत्र है, शायद वहां से इस तरह का इनपुट उन्हें प्राप्त हुआ होगा. लेकिन 5 अप्रैल को रात्रि 9:0० सचमुच एक बहुत ही शुभ घड़ी है और इस घड़ी में अगर किसी विशेष उद्देश्य के लिए आप प्रार्थना की जाती है तो उसकी सफलता की संभावना बहुत अधिक होगी. 9 एक पूर्ण अंक है और सबसे बड़ा भी और इसकी अनेकों विशेषतायें है, एक एक विशेषता है कि 9 अंक में कितनी ही बार 9 अंकों को जोड़ा जाए लेकिन उसके अंको का योग ९ ही रहेगा. इसमें किसी भी एक अंक से गुणा कर दिया जाए और गुणनफल के अंकों का टोटल भी ९ ही रहेगा.
अध्यात्म और सनातन धर्म दोनों में दिया जलाने का बहुत मतत्व है, प्रकाश उत्पन्न करना और ज्योतिपुंज बनाना अपने आप में बहुत ही सकारात्मक कार्य होता है क्योंकि इससे यह सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है. इसकी बहुत ही प्रासंगिकता है और वैज्ञानिक महत्व भी . अनेकों ज्योतिपुंज मिलकर इतनी सकारात्मक ऊर्जा का संचार करतेन हैं जिससे मनुष्य के आंतरिक संरचना के सभी अंग अच्छे ढंग से कार्य करना शुरू कर देते हैं.
एक और बात है सनातन संस्कृति में हर सुख और दुख को उत्सव के रूप में मनाते हैं और इसका उद्देश्य भी सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करके सभी को उससे लाभान्वित करना और / या नकारात्मक इकट्ठा हुई ऊर्जा का विनाश करना और लोगों को नकारात्मक ऊर्जा के दुष्प्रभाव से मुक्ति दिलाना होता है. बच्चे के जन्म से लेकर मनुष्य की मृत्यु तक अनगिनत संस्कार होते हैं .छठी, कनछेदन , नकछेदन, मुंडन, सालगिरह. उपनयन, वर इच्छा , तिलक, शादी, से से लेकर मरने पर तेरवीं , वर्षी , श्राद्ध आदि ऐसी क्रियाएं हैं जिनका उद्देश्य सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाना और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करना होता है.
रोजमर्रा के कामों में भी फसल बोने से लेकर काटने तक और प्रत्येक मौसम के शुरू होने पर कोई न कोई उत्सव मनाते हैं . छोटे बड़े सभी उत्सवों को हम देखें तो इस मुख्य उद्देश्य समाज को जोड़ना और एकजुटता प्रदर्शित करना होता है और सामूहिक सकारात्मक ऊर्जा के लाभ में सभी को सम्मिलित करना होता है .
शायद यह कहीं न कहीं यह इस ओर इशारा करता है कि हमारा जो मनुष्य जीवन है, वह अंधकार से प्रकाश की ओर एक यात्रा है.
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