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पितृ-सत्ता

  विनय गुप्ता किदवई नगर  के  अपने छोटे से घर की  की बालकनी में बैठे हुए थे. रोज सुबह यहां बैठकर चाय पीते हुए समाचार पत्र पढ़ना उनकी दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा था , पर न जाने क्यों आज की सुबह एकदम अलग थी. चाय तिपाई पर रखी ठंडी हो चुकी थी. कुर्सी पर बैठे हुए उनके हाथों में समाचार पत्र ज्यों का त्यों  रखा था.  सामने हनुमान मंदिर की तरफ से आने वाली सड़क पर चलते हुए वाहन और लोग रोज की तरह आ जा रहे थे.सूर्य की रोशनी काफी फैल चुकी थी लेकिन फिर भी सुबह कुछ अलसाई सी थी ,  लेकिन उसकी  आँखे जैसे अनंत में टंकी हुई थी. निष्क्रिय सा वह न जाने कबसे इसी एक ही  मुद्रा में बैठा था ,  जिसका  उसे  शायद अहसास भी  नहीं था. जब उसकी तंद्रा टूटी तो उसे   लगा कि कानपुर का मौसम अचानक   बदल गया है. बरसात हो चुकी है , चारों तरफ पानी ही पानी है. सड़कें भीगी है , पेड़ पौधे भीगे हैं और आसपास   पानी पानी ही   दिख रहा है. सब कुछ पानी से तरबतर है.   कुछ भी साफ दिखाई नहीं पड़ रहा था. उसे आश्चर्य हुआ कि कानपुर के   मौसम में इतना परिवर्तन अचानक तो नहीं होता. नाक पर नीचे खिसक गए अपने चश्मे को ऊपर खिसकाते   हुए उसने ठीक से