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झारखंड चुनाव के संदेश


झारखंड से प्राप्त चुनाव के रुझान से आभास हो रहा है कि  भारतीय जनता पार्टी पिछले चुनाव के अपने प्रदर्शन को दोहरा नहीं पाएगी। पिछली बार उसे 37 सीटें विधानसभा में प्राप्त हुईं थीं और अब की बार ऐसा लग रहा है कि ये  आंकड़ा  30 से आगे नहीं बढ़ पाएगा. बहुत स्पष्ट है कि यह भारतीय जनता पार्टी की नैतिक पराजय है और वह जोड़ तोड़ कर सरकार भले ही बना ले जिसकी संभावना भी कम लग रही है क्योंकि उसके पूर्व सहयोगी आजसू और झारखंड विकास मोर्चा को मिलाकर  भी इतनी सीटें नहीं मिल पा रही हैं जिससे सरकार बनाना संभव हो। चुनावों से से बहुत पहले आगाज हो गया था कि झारखंड में भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पाएगी औr कारण भी स्पष्ट थे और भारतीय जनता पार्टी को शीर्ष नेतृत्व को यह कारण मालूम भी होंगे लेकिन इसके बाद भी कोई कदम नहीं उठाया गया तो यह आश्चर्यचकित करने वाला है। भाजपा अगर सिर्फ वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास को हटाकर किसी अन्य व्यक्ति को मुख्यमंत्री बना देती तो भी संभावित नुकसान को रोका जा सकता था लेकिन भाजपा ने ऐसा नहीं किया।

भाजपा की हार के कारण
1. 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 37 सीटें मिली थी और उसने आजसू और जेवी एम  के साथ मिलकर सरकार बनाई थी । मुख्यमंत्री के रूप में रघुवर दास का चयन किया गया जो गैर आदिवासी थे इसलिए राज्य की जनसंख्या संतुलन के हिसाब से सबसे उपयुक्त उम्मीदवार नहीं थे।  भाजपा  ने  बहुत  आत्मविश्वास के साथ यह सोचा होगा कि केंद्र में सरकार होने के कारण राज्य में विकास के बहुत सारे कार्य होंगे और अगले 5 सालों में माहौल बदल जाएगा लेकिन रघुवर दास ऐसा नहीं कर सके हालांकि उन्होंने बहुत मेहनत की और विकास के कार्य भी हुए लेकिन शुरू से ही उनकी स्वीकार्यता आदिवासी वर्ग में नहीं थी।  आदिवासी क्षेत्रों में  कार्य करने के बाद भी रघुवर दास आदिवासी इलाकों में ही अपनी जगह नहीं बना पाए।

2. केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी दलों ने भी राज्य में भारतीय जनता पार्टी को लगभग हराने का ही काम किया । ऐसा लगता है कि केंद्र और राज्य के सभी सहयोगी दलों  ने केवल एक फार्मूले पर किया कि अपनी दीवार गिरे तो गिरे लेकिन पड़ोसी की भैंस मर जाना चाहिए यानी कि खुद का नुकसान हो तो हो लेकिन भाजपा को फायदा नहीं होना चाहिए।  लोक जनशक्ति पार्टी और  जेडीएस जिनका कोई बहुत प्रभाव राज्य में नहीं है उन्होंने ज्यादा से ज्यादा सीटों की मांग रखी जो शायद भाजपा के लिए संभव नहीं था इसलिए इनके साथ समझौता नहीं हो पाया ।

3.  राज्य में भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सहयोगी दलों  ने स्थिति भांपते हुए हुए अधिक से अधिक सीटें हासिल करने की मांग रखी और यह रस्साकशी इतनी चली कि आखिर तक बात नहीं बनी और समझौता नहीं हो सका।  इसलिए और सभी दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा और जैसा कि पहले से ही मालूम था लोक जनशक्ति पार्टी और जेडीएस अपना खाता भी नहीं खोल सकी और आजसू और जेवीएम   यह भी हम को भी खासा नुकसान उठाना पड़ा।

4. जो भी हो भारतीय जनता पार्टी अपने सहयोगियों को अपने साथ रखने में सफल नहीं हो सकी और परिणाम स्वरूप एक और राज्य में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता गंवानी पड़ेगी। 
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                                #शिव प्रकाश मिश्रा


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