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सियासी पारा : दिल्ली २०२०

दिल्ली के विधानसभा चुनाव बहुत ही रहस्य और रोमांच से भरे हुए हैं। एक महीने पहले की स्थिति केजरीवाल के तरफ झुकी हुई थी और उसका सबसे बड़ा कारण बिजली और पानी के बिलों में रियायत था । स्पष्ट है कि इसमें विकास की गाथा या भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन जैसा कुछ भी नहीं है। वास्तव में अन्ना आंदोलन से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले केजरीवाल सिर्फ इस आधार पर दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे कि वे पारदर्शिता लाएंगे और भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंक देंगे लेकिन ऐसा कुछ भी हुआ नहीं। उनके कई मंत्रियों को भ्रष्टाचार के कारण इस्तीफा देना पड़ा । उनके एक बहुत नजदीकी रिश्तेदार को केंद्रीय जांच ब्यूरो ने भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया है केजरीवाल सरकार ने निर्माण का ठेका दिया था। उनके निजी सचिव के ऑफिस और आवास पर छापे मारे गए उसमें भी काफी आपत्तिजनक चीजें निकली । इन सबसे कम से कम एक बात तो साफ है कि जिस बुनियाद पर केजरीवाल ने राजनीतिक पार्टी बनाई थी और जिस तरह की नई राजनीति जिसमें सुचिता , पारदर्शिता और ईमानदारी हो, कम से कम वह तो परवान नहीं चढ़ सकी । ऑटो रिक्शा , साइकिल और मारुति