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आँखों देखा सच नहीं भी हो सकता है ... लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्या आँखों का देखा हमेशा सच ही होता है ?

आंखों का काम केवल देखना है और उसकी सूचना मस्तिष्क को देना है. मस्तिष्क उस विषय पर अंतिम निर्णय लेता है. आंखों के देखने में, माध्यम की बड़ी भूमिका होती है, जिसके परिवर्तित होने से सूचना भी परिवर्तित हो सकती है, और इस तरह मस्तिष्क भी उस सूचना पर गलत निर्णय ले सकता है. एक पौराणिक कथा के माध्यम से इसे अच्छी तरह समझा जा सकता है. एक पंडित रामदास थे, जो राम कथा लोगों को सुनाते थे और वे स्वयं भी राम के अनन्य भक्त थे. उनकी कथा बहुत ही रोचक और रामकथा का सजीव चित्रण हुआ करती थी, इसलिए वह बहुत प्रसिद्ध थे और दूर-दूर से लोग उनकी कथा सुनने आते थे. पूरे ब्रह्मांड में हनुमान जी से बड़ा कोई भी राम भक्त नहीं है और इसलिए आज भी जहां कहीं रामकथा होती है, वहां हनुमान जी निश्चित रूप से पहुंचते हैं. हनुमान जी के बारे में कहा जाता है  "राम कथा सुनने को रसिया राम लखन सीता मन बसिया". पंडित राम दास की कथा सुनने भी हनुमान जी भी रोज भेष बदलकर पहुंचते थे. एक दिन रामदास की कथा में अशोक वाटिका का प्रसंग आया जब हनुमान जी सीता को खोजते हुए पहुंचे थे. हनुमान जी बहुत खुश हुए और जब पंडित जी ने हनुमान के अशोक वाटिक