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भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए 'वृद्धि की हिन्दू दर' का नाम किसने और क्यों शुरू किया था?

  "भारतीय अर्थ व्यबस्था के लिए हिन्दू विकास दर" शब्द प्रोफेसर राज कृष्ण द्वारा गढ़ा गया था, जिन्होंने 70 के दशक के अंत में अपने एक व्याख्यान में हिंदू वृद्धि दर का तर्क दिया था. बाद में इसका इस्तेमाल कुछ अर्थशास्त्रियों ने "कर्म" और "भाग्य" की हिंदू मान्यताओं को 50-80 के दशक की कम वृद्धि दर से जोड़ने के लिए किया. क्या है वृद्ध की हिंदू दर ? भारत की अर्थव्यवस्था की विकास की दर 1950 से 1980 तक लगभग 3.5% थी जबकि प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि 1.3% थी। यह बेहद कम और निम्न स्तरीय वृद्धि दर थी, जिसके लिए जवाहरलाल नेहरू की औद्योगिक और विकास की नीतियां जिम्मेदार थी, लेकिन इस कम वार्षिक विकास दर को हिंदू वृद्धि दर से संबोधित किया गया था जिसका हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि से कोई लेना देना नहीं है. इस कम विकास की दर का ठीकरा हिंदुओं के सिर पर फ़ोड़ा गया और यह कहा गया सामान्य हिंदू बेहद संतोषी प्रवृत्ति के लोग होते हैं और उनके अंदर ज्यादा कुछ करने की और पाने की चाहत नहीं होती है. इसलिए देश आर्थिक रूप से बहुत अधिक प्रगति नहीं कर पा रहा है . यह न केवल हिंदुओं के लिए धार्मिक र