लगभग सही बात है कि झारखंड में बीजेपी के चुनाव हार जाने का सबसे बड़ा कारण वहां के मुख्यमंत्री रघुवर दास है. लेकिन चुनावी हार का केवल एक कारण नहीं होता । अन्य इस प्रकार हैं -
- झारखंड का निर्माण इस उद्देश्य को लेकर किया गया था कि बिहार से अलग होने के बाद आदिवासी बहुल इस राज्य का विकास बहुत तेजी से हो सकेगा। एक ऐसा राज्य जिसमें प्राकृतिक संपदा की कमी नहीं है उसके विकास में किसी चीज की कोई कमी आड़े आएगी इसकी संभावना नहीं थीं । झारखंड के निर्माण के शुरुआती दिनों से ही अस्थिरता का दौर शुरू हुआ और कोई भी दल अपने दम पर सरकार नहीं बना सका। पिछली सरकार के निर्माण के समय भारतीय जनता पार्टी को 80 में से 37 सीट से मिली हुई थी और उसने आजसू और जेवीएम की मदद से सरकार बनाई और पूरे 5 साल तक विकास के अनेकों कार्य किए। लेकिन चूंकि रघुवर दास एक गैर आदिवासी व्यक्ति थे इसलिए उनकी स्वीकार्यता आदिवासी समुदाय में नहीं हो पाई और यह शायद ये सबसे बड़ी कमी शुरुआत से ही थी जिसे भाजपा आखिर समय तक पूरा नहीं कर सकी ।
- मुख्यमंत्री का व्यौहार अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं के प्रति बहुत संवेदनशील नहीं रहा इसलिए अपने 5 सालों के कार्यकाल में वह पार्टी, संगठन , कार्यकर्ताओं और जनता में सामंजस्य नहीं बना पाए। यद्यपि विकास के बहुत सारे कार्य हुए लेकिन यह काम जनता के बीच नहीं पहुंच पाए।
- दुर्भाग्यवश भारतीय जनता पार्टी का स्थानीय संगठन अच्छे ढंग से कार्य नहीं कर सका इसलिए टिकट वितरण में बहुत सारी गड़बड़ियां हुई। सरयू राय जो पार्टी के वरिष्ठ नेता और संघ के स्वीकार्य नेता थे उन्हें टिकट नहीं दिया गया जिसके परिणाम स्वरूप उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मुख्यमंत्री के खिलाफ जमशेदपुर से चुनाव लड़ने का फैसला किया और प्रण लिया कि वह मुख्यमंत्री को हरा कर रहेंगे। वैसा ही हुआ मुख्यमंत्री अपना चुनाव हार गए । प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी चुनाव हार गए और बहुत से ऐसे लोग जिन्हें मुख्यमंत्री ने पैरवी करके टिकट दिलवाया था , चुनाव हार गए।
- लेकिन आश्चर्यचकित करने वाली बात यह है कि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को इस जमीनी हकीकत की जानकारी क्यों नहीं हो पाई?
- अगर चुनाव के थोड़ा पहले भी मुख्यमंत्री को बदल दिया जाता तो भी शायद इतना बड़ा नुकसान नहीं होता और सरयू राय जैसे वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार नहीं किया जाता तो भी इतना बड़ा नुकसान नहीं होता।
- लेकिन इसके अलावा भी और बहुत सारे कारण है जिसमें प्रमुख है अपने सहयोगियों के साथ तालमेल न बैठा पाना और जो सीटों का समझौता होना था वह नहीं हो पाया। भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव अकेले अपने दम पर लड़ा । पूर्व सहयोगी आजसू और जेवीएम दोनों ने भी अलग-अलग चुनाव लड़ा। इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा सहित तीनों पार्टियों को बहुत जबरदस्त नुकसान हुआ।
- एक और बड़ा कारण है कि केंद्र में भाजपा की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी और जेडीयू ने भी लगभग सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और उन्होंने भाजपा को एक तरीके से ब्लैकमेल करने की कोशिश की कि या तो उन्हें समुचित सीटे दी जाए या फिर वह सभी जगह चुनाव लड़ेंगे । क्योंकि इन पार्टियों का झारखंड में कोई बहुत प्रभाव नहीं है इसलिए बहुत स्वाभाविक था कि भाजपा ने उनकी बात नहीं मानी और इन पार्टियों ने भी लगभग सभी सीटों पर चुनाव लड़ा। नतीजतन भारतीय जनता पार्टी को बहुत नुकसान पहुंचाया।
- अगर इन सभी पार्टियों को मिले वोट जोड़ दिये जाए तो स्पष्ट हो जाता है की जीत इन्हीं की होती। एक और सबसे बड़ा कारण था कि पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह जो अपने रण कौशल के लिए जाने जाते हैं वह देश के गृहमंत्री है और ना तो प्रदेश के संगठन के लिए और ना ही झारखंड के चुनाव के लिए विस्तृत योजना बनाने के लिए उन्हें कोई समय मिला। बहुत महत्वपूर्ण बिल संसद में पास होने थे, इसलिए उनका पूरा ध्यान अपने काम पर रहा और चुनाव पीछे छूट गया। **************************** शिव मिश्रा ****************************
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